Hanuman Jayanti Special 2022: हनुमान नाम ही उत्साहवर्धन करने वाला
पूरा भारतीय वाङ्मय हनुमान जी से श्रेष्ठ और समर्पित भक्त/सेवक किसी को नहीं मानता। संस्कृत साहित्य में हनुमान जी के दर्शन सबसे पहले वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा काण्ड में होते हैं। महर्षि वाल्मीकि हनुमान जी को महानुभाव (सम्मानीय), दुरासद (जिन्हें सरलता से नहीं जीता जा सकता) और भीम (शक्तिशाली) कहते हैं।
पूरा भारतीय वाङ्मय हनुमान जी से श्रेष्ठ और समर्पित भक्त/सेवक किसी को नहीं मानता। हनुमान नाम ही उत्साहवर्धन करने वाला है। जब-जब भारतीय जनमानस निराशा के अंधकार में डूब रहा था तब हनुमान जी के चरित्र ने उसे आशा की नई किरण दिखाई।
मातृभूमि से हजारों किलोमीटर दूर गन्ने के खेतों में काम करने वाले विवश गिरमिटिया मजदूरों को हनुमान जी का ही संबल था। स्वाधीनता समर में अंग्रेजों से बचते हुए, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारी भी हनुमान मंदिर में पुजारी बनकर रहे थे।
मातृभूमि से हजारों किलोमीटर दूर गन्ने के खेतों में काम करने वाले विवश गिरमिटिया मजदूरों को हनुमान जी का ही संबल था। स्वाधीनता समर में अंग्रेजों से बचते हुए, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारी भी हनुमान मंदिर में पुजारी बनकर रहे थे।
हनुमान जी को शारीरिक और बौद्धिक बल का देवता मान कर गांव-गांव पूजा गया है।
संस्कृत साहित्य में हनुमान जी के दर्शन सबसे पहले वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा काण्ड में होते हैं। पंपा सरोवर से ऋष्यमूक पर्वत की ओर दो तपस्वियों को आते देख सुग्रीव बेचैन हो जाते हैं।
तब संवाद में कुशल (वाक्यविद्) हनुमान उन्हें भरोसा दिलाते हैं कि उन्हें यहां वाली से खतरा नहीं है। सुग्रीव हनुमान को साधारण वेश में जाकर यह पता लगाने को कहते हैं कि राम-लक्ष्मण यहां क्यों आए हैं।
महर्षि वाल्मीकि हनुमान जी को महानुभाव (सम्मानीय), दुरासद (जिन्हें सरलता से नहीं जीता जा सकता) और भीम (शक्तिशाली) कहते हैं।
वहीं महाकवि भट्टि हनुमान जी को शर्मद (सुख देने वाले) और शोक भगा देने वाला बताते हैं।
महर्षि वाल्मीकि हनुमान जी को महानुभाव (सम्मानीय), दुरासद (जिन्हें सरलता से नहीं जीता जा सकता) और भीम (शक्तिशाली) कहते हैं।
वहीं महाकवि भट्टि हनुमान जी को शर्मद (सुख देने वाले) और शोक भगा देने वाला बताते हैं।