Omicron increases the risk of heart attack in children: 18849 मरीजों पर हुआ अध्ययन
करीब 21.1 फीसदी बच्चों में ही कोरोना और यूएई दोनों की स्थिति गंभीर हुई थी। जिसमें सांस लेने के लिए उनके नली डालनी पड़ी। बार बार स्थिति बिगड़ने पर इन बच्चों में दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है।
यह शोध पिछले हफ्ते जामा पीडियाट्रिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ। उधर, जीनोम सीक्वेंसिंग नेटवर्क इन्साकॉग के अनुसार, कई सवाल उठने के बाद भी कोरोना रोधी टीका देश में करोड़ों जिंदगियों को बचाने में कामयाब रहा है।
वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अन्य कोरोना वैरिएंट के मुकाबले ओमिक्रॉन बच्चों के लिए अधिक खतरनाक है। बच्चों में ओमिक्रॉन के कारण दिल का दौरा पड़ने का खतरा अधिक होता है। इसका कारण ओमिक्रॉन से उनके ऊपरी वायुमार्ग में होने वाला संक्रमण (यूएआई) है। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो में हुए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 19 साल की उम्र तक के अस्पताल में भर्ती 18,849 कोरोना मरीजों पर बीमारी के असर का आकलन किया।
अमेरिका की नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी और स्टोनी ब्रूक यूनिवर्सिटी के शोधार्थी भी इस अध्ययन में शामिल हुए। अध्ययन में पाया गया कि छोटी उम्र के बच्चों में ओमिक्रॉन के कारण यूएआई का खतरा अधिक होता है। इसमें भी ओमिक्रॉन के पूरी तरह हावी होने से पहले औसत 4 साल 5 महीने के बच्चों को खतरा अधिक था, वहीं ओमिक्रॉन की सक्रिय लहर के दौरान दो साल तक के बच्चों पर भी इसका खतरा बढ़ जाता है।
हालांकि गंभीर क्रॉनिक स्थिति की बात करें तो लहर से पहले और उसके दौरान भर्ती हुए बच्चों की संख्या में बहुत अंतर नहीं था। करीब 21.1 फीसदी बच्चों में ही कोरोना और यूएई दोनों की स्थिति गंभीर हुई थी। जिसमें सांस लेने के लिए उनके नली डालनी पड़ी। बार बार स्थिति बिगड़ने पर इन बच्चों में दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। यह शोध पिछले हफ्ते जामा पीडियाट्रिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ।
अमेरिका की नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी और स्टोनी ब्रूक यूनिवर्सिटी के शोधार्थी भी इस अध्ययन में शामिल हुए। अध्ययन में पाया गया कि छोटी उम्र के बच्चों में ओमिक्रॉन के कारण यूएआई का खतरा अधिक होता है। इसमें भी ओमिक्रॉन के पूरी तरह हावी होने से पहले औसत 4 साल 5 महीने के बच्चों को खतरा अधिक था, वहीं ओमिक्रॉन की सक्रिय लहर के दौरान दो साल तक के बच्चों पर भी इसका खतरा बढ़ जाता है।
हालांकि गंभीर क्रॉनिक स्थिति की बात करें तो लहर से पहले और उसके दौरान भर्ती हुए बच्चों की संख्या में बहुत अंतर नहीं था। करीब 21.1 फीसदी बच्चों में ही कोरोना और यूएई दोनों की स्थिति गंभीर हुई थी। जिसमें सांस लेने के लिए उनके नली डालनी पड़ी। बार बार स्थिति बिगड़ने पर इन बच्चों में दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। यह शोध पिछले हफ्ते जामा पीडियाट्रिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ।