Commotion on Buildings: काशी-मथुरा और ताजमहल से कुतुब मीनार तक कहां किस बात पर हो रहा बवाल
काशी, मथुरा, आगरा और दिल्ली इन सभी शहरों में इस वक्त मंदिर-मस्जिद को लेकर बवाल चल रहा है। मध्य प्रदेश के धार में भी ऐसा ही विवाद कोर्ट पहुंच चुका है। किसी मामले में कोर्ट ने सर्वे करने का आदेश दिया है तो किसी मामले को कोर्ट ने सुनने से ही इनकार कर दिया है। कोई ताजमहल को शिव मंदिर बता रहा है तो कोई कुतुब मीनार को विष्णु स्तंभ घोषित करने की मांग कर रहा है।
देश में मंदिर-मस्जिद को लेकर चल रहे पांच बड़े मामले कौन से हैं? इनका इतिहास क्या है? ये अभी किस वजह से चर्चा में हैं? विवाद की पूरी कहानी क्या है? आइये जानते हैं…
स्थान: ज्ञानवापी मस्जिद, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
अभी क्यों चर्चा में: ज्ञानवापी परिसर स्थित श्रृंगार गौरी समेत कई विग्रहों के सर्वे और वीडियोग्राफी का आदेश कोर्ट ने दिया था। 10 मई को कोर्ट में रिपोर्ट सौंपनी थी। इसके लिए कोर्ट ने एक कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था। हालांकि, सर्वे करने पहुंचे कोर्ट कमिश्नर और वादी पक्ष का मुस्लिम पक्ष ने विरोध कर दिया। नौ मई को मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट कमिश्नर की निष्पक्षता पर सवाल उठाए और उन्हें हटाने की मांग की। इसी को लेकर कोर्ट में तीन दिन बहस चली और फिर कोर्ट ने नया आदेश दिया।
कितना पुराना है विवाद: 1991 में वाराणसी कोर्ट में पहला मुकदमा दाखिल हुआ। याचिका में ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति मांगी गई। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी इसमें शामिल हैं। मुकदमा दाखिल होने के कुछ महीने बाद सितंबर 1991 में केंद्र सरकार ने पूजा स्थल कानून बनाया। ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। ज्ञानवापी मामले में इसी कानून का हवाला देकर मस्जिद कमेटी ने याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी भी मामले में स्टे ऑर्डर की वैधता केवल छह महीने के लिए ही होगी। उसके बाद ऑर्डर प्रभावी नहीं रहेगा। इस आदेश के बाद 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई। इस याचिका में मस्जिद परिसर के सर्वे की मांग की गई। कोर्ट ने आदेश भी दिया लेकिन अप्रैल 2021 में हाईकोर्ट ने सर्वे पर रोक लगा दी।
18 अगस्त 2021 को दिल्ली की पांच महिलाओं ने बनारस की एक अदालत में नई याचिका दाखिल की थी। इन महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के पीछे वाले हिस्से में स्थित मां श्रृंगार गौरी की प्रतिमा की पूजा की अनुमति मांगी। इसी याचिका पर परिसर का सर्वे हो रहा है।
इतिहास क्या कहता है: इस मामले में याचिका लगाने वालों का दावा है कि 1699 में मुगल शासक औरंगजेब ने मूल काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वाकर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। वहीं, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां मंदिर नहीं था और शुरुआत से ही मस्जिद बनी थी। कहा जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था।
स्थान: ताजमहल, आगरा, उत्तर प्रदेश
स्थान: कुतुब मीनार, दिल्ली
स्थान: शाही ईदगाह मस्जिद, मथुरा, उत्तर प्रदेश
स्थान: भोजशाला, मध्यप्रदेश
अभी क्यों चर्चा में: इंदौर हाईकोर्ट में दो मई को याचिका दायर की गई है। इसमें भोजशाला को पूर्णत: हिंदुओं के अधिकार में देने की मांग की गई है। इसके लिए प्रमाण भी प्रस्तुत किए गए हैं।
कितना पुराना विवाद: विवाद की शुरुआत 1902 से बताई जाती है, जब धार के शिक्षा अधीक्षक काशीराम लेले ने मस्जिद के फर्श पर संस्कृत के श्लोक खुदे होने का दावा किया और इसे भोजशाला बताया। विवाद का दूसरा पड़ाव 1935 में आया, जब धार महाराज ने इमारत के बाहर तख्ती टंगवाई जिस पर भोजशाला और मस्जिद कमाल मौलाना लिखा था। आजादी के बाद ये मुद्दा सियासी गलियारों से भी गुजरा। मंदिर में जाने को लेकर हिंदुओं ने आंदोलन किया। इसकी देखरेख ऑकियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, यानी ASI करता है। उसने हिंदुओं को यहां हर मंगलवार और वसंत पंचमी पर पूजा करने और मुस्लिमों को हर शुक्रवार को नमाज पढ़ने की इजाजत दी है। यहां 2006, 2013 और 2016 को शुक्रवार के दिन वसंत पंचमी पड़ने पर सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं।
इतिहास क्या कहता है: करीब 800 साल पुरानी इस भोजशाला को लेकर हिंदू-मुस्लिम मतभेद हैं। हिंदुओं के मुताबिक भोजशाला यानी सरस्वती का मंदिर है। जबकि मुस्लिम इसे पुरानी इबादतगाह बताते हैं। हिंदू संगठनों का दावा है कि भोजशाला राजा भोज द्वारा स्थापित सरस्वती सदन है। यहां कभी शिक्षा का एक बड़ा संस्थान हुआ करता था। बाद में यहां पर राजवंश काल में मुस्लिम समाज को नमाज के लिए अनुमति दी गई, क्योंकि यह इमारत अनुपयोगी पड़ी थी। पास में सूफी संत कमाल मौलाना की दरगाह है। ऐसे में लंबे समय से मुस्लिम समाज में नमाज अदा करने का कार्य करते रहे। परिणाम स्वरूप वह दावा करते हैं कि यह भोजशाला नहीं बल्कि कमाल मौलाना की दरगाह है।
एक और तर्क चलता है जिसके मुताबिक भोजशाला का निर्माण राजा भोज ने 1034 में कराया था। 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने इस पर हमला किया। बाद में दिलावर खान ने यहां स्थित विजय मंदिर को नष्ट करके सरस्वती मंदिर भोजशाला के एक हिस्से को दरगाह में बदलने की कोशिश की। इसके बाद महमूदशाह ने भोजशाला पर हमला करके सरस्वती मंदिर के बाहरी हिस्से पर कब्जा करते हुए वहां कमाल मौलाना का मकबरा बना दिया। 1997 से पहले हिंदुओं को यहां पूजा नहीं, बल्कि केवल दर्शन करने की इजाजत थी।